स्वच्छ भारत अभियान की वास्तविकता

स्वच्छ भारत अभियान की वास्तविकता

प्रधानमंत्री द्वारा चलाए गए स्वच्छ भारत अभियान ने 2 अक्टूबर को तीन वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। इस बीच स्वच्छ भारत और देश को खुले में शौच मुक्त करने के लिए चलाए गए अभियानों से जुड़ी अनेक झूठी-सच्ची खबरें लोगों तक पहुंचती रहीं। अलग-अलग समय पर विभिन्न सरकारों द्वारा चलाए गए स्वच्छता अभियान के संबंध में हम कई बातें सुनते रहते हैं, जैसे-शौचालयों का निर्माण तो केवल सरकारी फाइलों में हुआ है और अगर हुआ भी है, तो उन्हें गोदामों की तरह उपयोग में लाया जा रहा है, वगैरह-वगैरह। यही कारण है कि मोदी सरकार ने अपने इस अभियान की सफलता की वास्तविकता को जांचने के लिए क्वालिटी कांऊसिल ऑफ  इंडिया के माध्यम से एक सर्वेक्षण कराया है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर पता लगाएगा कि सरकार के वायदे एवं सेवाएं प्रदान करने के बाद वास्तव में ग्रामीणों को उसका लाभ मिल रहा है या नहीं।
  • क्वालिटी कांउसिल ऑफ इंडिया एक ऐसा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय संस्थान है,जो अंतरराष्ट्रीय मानकों पर स्वच्छ भारत अभियान की सफलता का आकलन करेगा। देश की 130 करोड़ आबादी को देखते हुए यह और भी जरूरी हो जाता है कि स्वच्छ भारत जैसे विशाल अभियान की सफलता को मापा जाए।
  • स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2017 के इस सर्वेक्षण में 1.40 लाख घरों को शामिल किया गया। इन घरों में कार्यकर्ताओं ने स्वयं जाकर शौचालय होने या न होने की पुष्टि की। परिणाम चैंकाने वाले थे।
  • 2011 की जनगणना में जहाँ 10 में से 5 घरों में शौचालय नहीं थे और गहरे स्तर पर देखें, तो 7 घरों में शौचालय नहीं पाए गए थे, वहीं शहरों के स्तर पर यह 10 में से 2 घरों में नहीं थे। इस प्रकार 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं थे।
स्वच्छ भारत अभियान चलाए जाने के बाद यह 50 प्रतिशत घटकर 26.75 पर आ गया है। ग्रामीण स्तर पर जो 69 प्रतिशत था, वह 32.5 प्रतिशत पर आ गया है। इसका अर्थ है कि इन तीन वर्षों में लगभग दुगुने शौचालय बनाए गए हैं।
  • यदि शौचालयों के प्रयोग को देखें, तो ग्रामीण क्षेत्रों में 10 में से 9 घर ऐसे हैं, जहाँ इनको प्रयोग में लाया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों में भी यही स्थिति है।
  • सर्वेक्षण में शामिल 73 नगरों में से 54 नगरों ने ठोस कचरा निस्तारण में प्रगति की है।
  • स्वच्छ भारत की ग्रामीण एवं शहरी योजनाओं ने नगरों और जिलों के बीच एक प्रतियोगिता का वातावरण बना दिया है। कई गैर सरकारी संगठन, स्वयं सेवी संस्थाएं, लोकप्रिय हस्तियां इस महायज्ञ में हाथ बंटाने को आगे आई हैं। इन सबका परिणाम शौचालयों के निर्माण, खुले में शौच मुक्त नगर, स्कूलों में लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग प्रसाधन बनने के अलावा खुले में शौच मुक्त नगरों एवं ग्रामों में पानी से फैलने वाली बीमारियों में आई कमी के रूप में देखा जा सकता है।
  • अभी तक क्वालिटी कांऊसिल ऑफ इंडिया ने शौचालयों के निर्माण, उनके उपयोग, सीवेज एवं ठोस कचरा निस्तारण तंत्र जैसे बुनियादी ढांचों एवं खुले में शौच आदि का आँकलन किया है। इसके बाद का सर्वेक्षण लोगों की सोच एवं व्यवहारगत परिवर्तन को लेकर किया जाना चाहिए।
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए जन आंदोलन, बुनियादी ढांचों के त्वरित विकास एवं इनके प्रभाव के आकलन तीनों की ही आवश्यकता है। खुले में शौच के कारण फैलने वाली बीमारियों से जितनी जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं, उसकी तुलना में स्वच्छ भारत अभियान का खर्च कम दिखाई देता है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित आदिल जैनूलभाई के लेख पर आधारित। लेखक-क्वालिटी कांऊसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं।

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