जीवन और मृत्यु के बीच दुविधा में खड़ा इंसाफ

जीवन और मृत्यु के बीच दुविधा में खड़ा इंसाफ

सुप्रीम कोर्ट, सरकार और कामन काज़ संस्था मानव सभ्यता के गहरे दार्शनिक सवालों में उलझ गई है।

संपादकीय
लिविंग विल यानी जीवन की वसीयत के मुद्‌दे पर चर्चा के बहाने सुप्रीम कोर्ट, सरकार और कामन काज़ संस्था मानव सभ्यता के गहरे दार्शनिक सवालों में उलझ गई है और इसका समाधान उन सवालों के जवाब देगा जो बीमारी और बुढ़ापे के साथ खड़े होते हैं लेकिन, मृत्यु के साथ समाप्त नहीं होते। मशहूर वकील प्रशांत भूषण की संस्था ने न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न उठाया है कि क्यों न अदालत नागरिक को स्वस्थ रहते हुए यह वसीयत करने की इजाजत दे कि उसे बीमारी की अंतिम अवस्था में वेंटिलेटर पर न रखा जाए। उनका कहना है कि मनुष्य का यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन के अधिकार का हिस्सा है और अगर कोई पीड़ादायक मृत्यु के बजाय सहज मृत्यु की वसीयत लिखना चाहता है तो उसे वैसा हक मिलना चाहिए। सरकार का कहना है कि ऐसा अधिकार दिए जाने के खतरे हैं और अपने बुजुर्गों से ऊबे लोग इसका दुरुपयोग कर सकते हैं। सवाल यह भी है कि उस वसीयत के वास्तविक होने या मरीज की हालत खराब होने को कौन प्रमाणित करेगा। इन बहसों की पृष्ठभूमि में निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेसिया) का वह फैसला है जो अदालत ने 2011 में अरुणा शानबाग नामक नर्स के मामले में दिया था। दुष्कर्म की शिकार वह नर्स तकरीबन 42 साल से अस्पताल में अचेत अवस्था में पड़ी थी। यह प्रश्न विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पीवी रेड्‌डी की 241 वीं रिपोर्ट के संदर्भ में भी उठ रहा है, जिन्होंने निष्क्रिय इच्छामृत्यु के अधिकार को संवैधानिक बताए जाने के बाद रिपोर्ट दी थी। इस सवाल को 1970 के दशक में इवान इलीच ने अपनी पुस्तक मेडिकल नेमेसिस(चिकित्सीय अभिशाप) में भी उठाया था। उनका कहना था कि मृत्यु को अनावश्यक तरीके से आगे बढ़ाने के पीछे संवेदनहीनता के साथ आर्थिक कारण भी हैं। पुस्तक में उनकी वह मशहूर टिप्पणी भी थी कि मानव स्वास्थ्य के साथ अस्पताल बहुत बड़ी त्रासदी हैं। यह सवाल भी है कि प्राकृतिक मृत्यु जैसी घटना जिस पर न तो चिकित्सीय विज्ञान का नियंत्रण है और न ही न्यायालय का, उस पर बड़े-बड़े प्रश्नों की कितनी सार्थकता है। हो सकता है इस बहस में यह संभावना भी छुपी हो कि एक दिन मृत्यु मेडिकल विज्ञान के सामने परास्त हो जाएगी तब ये बहसें नज़ीर की तरह से काम करें।
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