रोबोट के साथ आगे बढ़ती हमारी दुनिया
रोबोट के साथ आगे बढ़ती हमारी दुनिया
कत्सुतोशी डोबाशी, तकनीकी मामलों के पत्रकार

दुनिया का पहला साइबोर्ग (साइबरनेटिक ऑर्गेनिज्म का संक्षिप्त नाम) टाइप रोबोट हाइब्रिड एसिस्टिव लिंब (एचएएल) इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है। जापानी कंपनी साइबरडाइन द्वारा तैयार यह रोबोट सूट पहनने वाले की शारीरिक क्षमता को बढ़ाता है। दरअसल, जब हम कुछ करना चाहते हैं, जैसे कि चलना, तो पहले हम सोचते हैं कि ‘हमें चलना चाहिए।’ इसके लिए तमाम जरूरी संकेत हमारे मस्तिष्क से उन मांसपेशियों तक पहुंचते हैं, जिन्हें वह काम करना होता है। ये संकेत तंत्रिका तंत्र के माध्यम से पहुंचते हैं। इस प्रक्रिया में बहुत हल्का संकेत हमारी त्वचा पर भी उभरता है। यह रोबोट सूट उसी संकेत को पकड़ता है और अपनी ऊर्जा उस काम को करने में लगा देता है। इस रोबोटिक सूट का इस्तेमाल कई परिस्थितियों में किया गया है। इसका एक प्रकार है, ‘सिंगल जॉइंट’, जो हाथ व घुटने के जोड़ों के रूप में प्रयोग करने के अलावा बिस्तर पर पड़े इंसान के लिए भी मददगार साबित हुआ है। वहीं, इसका ‘होल बॉडी’ सूट आपदा बचाव व सहायता के कामों में उपयोग किया गया है। 2011 के विनाशकारी भूकंप के बाद जापान के एक बिजली संयंत्र में हुए परमाणु हादसे में रेडिएशन के बीच सहायताकर्मियों ने इसी सूट को पहनकर मरम्मत का काम किया था। टोक्यो के हानेडा हवाईअड्डे पर इसका ‘लंबर’ प्रकार का सूट मजदूरों के लिए इस्तेमाल होता है, खासतौर से भारी-भरकम माल उतारने जैसे कामों में।
आज जापान जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उनसे बाकी मुल्क भी अगले कुछ दशकों में दो-चार होने वाले हैं। ऐसे में, जनसांख्यिकीय बदलावों से निपटने की जापान की पहल पर गौर करना जरूरी है। भारत जैसे देशों को खास तौर पर ध्यान देना चाहिए, जिसका वास्ता अगले कुछ दशकों में बुजुर्ग आबादी से पड़ने वाला है। इस लिहाज से ‘पेपर’ रोबोट उल्लेखनीय है, जो घर पर बुजुर्गों की देखभाल करने और युवाओं के साथ उनका तारतम्य बिठाने में काफी मददगार साबित हो रहा है। इसे जापानी कंपनी सॉफ्टबैंक ने तैयार किया है। यह बुजुर्गों की शारीरिक देखभाल करने के साथ-साथ उनका भावनात्मक ख्याल भी रखता है। इसी तरह, जून, 2016 में सोनी ने घोषणा की थी कि वह फिर से रोबोटिक कारोबार में उतरेगी। 10 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं, जब सोनी ने कुत्ते की तरह का रोबोट ‘एबो’ का उत्पादन बंद कर दिया था। इस बार भी वह एबो जैसा रोबोट विकसित करना चाहती है, जो देखभाल, पोषण जैसी गतिविधियों में शामिल होगा।
जाहिर है, ‘रोबोट के साथ रहना’ अब कोई फसाना नहीं रहा। आज उस प्रौद्योगिकी में तेज तरक्की दिख रही है, जो लोगों को व्यावहारिक मदद दे सके। इतिहास में भले ही तकनीकी बदलाव ने कई नौकरियां खत्म की हैं, मगर कई नई चीजों को आकार देने में उन्होंने हमारी मदद भी की है। इसलिए तकनीक मानव कल्याण में वृद्धि के साथ गुंथी हुई है। मानव के लिहाज से कई ऐसे काम हैं, जो रोबोट नहीं कर सकता। लिहाजा इस बदलाव को सकारात्मक रूप से लेने और आगे बढ़ने की जरूरत है।
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