ताजमहल को नए नज़रिये से देखते योगी आदित्यनाथ

संपादकीय 
 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगरा के साथ ताज का भी दौरा करके विवादित बयानों से पैदा होती गर्मी को ठंडा करने की कोशिश की है। योगी का ताजमहल के पश्चिमी द्वार पर झाड़ू लगाना, भीतर जाकर कुछ समय बिताना और ताज के विकास के लिए 370 करोड़ का एलान करना सब कुछ सरकार और पार्टी की बिगड़ती अंतरराष्ट्रीय छवि को सुधारने के लिए किया गया एक योजनाबद्ध प्रयास लगता है। यूनेस्को द्वारा अंतरराष्ट्रीय विरासत के रूप में संरक्षित ताजमहल भारत का सबसे ज्यादा सुंदर और कमाऊ पर्यटन स्थल है। भारत आने वाला हर पर्यटक आगरा जाता है और ताजमहल जरूर देखता है। ऐसे में अब उस इमारत के बारे में इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ने से भले राष्ट्रवाद का नया आख्यान खड़ा हो लेकिन, पूरी दुनिया में भारत की छवि को गहरा धक्का लगता है। भारत पूरी दुनिया में अपनी विविधता और साझी विरासत के लिए प्रसिद्ध है। उस विरासत के कारण ही यहां लोकतंत्र है और अब लोकतंत्र का दायित्व है कि वह उसकी रक्षा करे। लोकतंत्र अगर उसकी रक्षा नहीं कर सकता तो वह अपनी भी रक्षा नहीं कर पाएगा क्योंकि, लोकतंत्र सिर्फ नियत समय पर होने वाला चुनावी जलसा ही नहीं है। वह एक संस्कृति और जीवनशैली है। भारत के लोग जब अपनी उदारता का दावा करते हैं तो उनका यह फर्ज बनता है कि वे उन मूल्यों, परम्पराओं और संस्कृतियों की रक्षा करें, जिन्हें अन्य समुदायों ने निर्मित किया है और वे उसे भारत की संरचना में अपना योगदान मानते हंै। यह सही है कि इतिहास लगातार लिखा जाता है और हर शासक अपनी सोच और जरूरत के लिहाज से इतिहास गढ़ता है। इसके बावजूद इतिहास में झूठ को शामिल करने का प्रयास उतना ही घातक होता है, जितना भड़काऊ सच को बार-बार उल्लिखित करने का। इतिहास हमें यही सिखाता है कि हम उससे झगड़ा बढ़ाने के बजाय झगड़ा शांत करने का फॉर्मूला निकालें। इसलिए इतिहास को लिखने और तय करने का फैसला न तो भीड़ पर छोड़ा जा सकता है और न ही विचारधारात्मक पूर्वग्रह के हवाले। योगी सरकार आगे क्या करेगी यह तो वही जानती है इसके बावजूद अगर वह ताजमहल संबंधी विवाद को शांत करके उत्तर प्रदेश, आगरा और ताज के विकास के काम में लगना चाहती है तो यह लोकतंत्र की जीत है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

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