बराबरी का सफर

विलंब से ही सही, रेलवे मंत्रालय ने अगर वीआइपी संस्कृति को समाप्त करने की दिशा में कुछ पहल की है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। रेलमंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि नए आदेश के मुताबिक रेलवे बोर्ड के सदस्यों से लेकर विभिन्न जोन के महाप्रबंधक और सभी पचास मंडलों के प्रबंधक भी अब अपनी सरकारी यात्राएं स्लीपर और एसी-थर्ड श्रेणियों में करेंगे। इसके अलावा रेलवे के बड़े अधिकारियों के बंगलों पर घरेलू नौकरों की तरह काम करने वाले ट्रैकमैन जैसे रेलवेकर्मियों को तुरंत वहां से मुक्त कर उनकी वास्तविक ड््यूटी पर भेजा जाएगा। सचमुच यह आंकड़ा चौंकाने वाला है कि तीस हजार ट्रैकमैन बरसों से अधिकारियों के घरों पर घरेलू नौकरों की तरह काम रहे हैं, जबकि उनका वेतन विभाग से दिया जा रहा। मंत्रालय ने अपूर्व कदम उठाते हुए छत्तीस साल पुराने एक प्रोटोकॉल नियम को भी समाप्त कर दिया है, जिसमें महाप्रबंधकों के लिए अनिवार्य था कि वे रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की क्षेत्रीय यात्राओं के दौरान उनके आगमन और प्रस्थान के समय मौजूद रहेंगे। यह फैसला रेलवे बोर्ड ने खुद किया है। 1981 में बनाए गए इस प्रोटोकॉल को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्विनी महाजन ने समाप्त करने का एलान किया। उन्होंने यह निर्देश भी दिया है कि किसी भी अधिकारी को कोई गुलदस्ता या उपहार नहीं भेंट किया जाएगा।वीआइपी संस्कृति को खत्म करने की दिशा में सबसे पहले रास्ता दिखाया आम आदमी पार्टी ने, जब पहली बार उसे दिसंबर 2013 में दिल्ली में अपनी सरकार बनाने का मौका मिला था। इसके बाद पूरे देश में इस पर बहस तेज हुई। हालांकि सिर्फ गाड़ियों से लालबत्ती उतारने तक इस मुद््दे को सीमित नहीं किया जा सकता। इस साल अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने ‘मन की बात’ संबोधन में कहा था कि सारे देश में वीआइपी संस्कृति के प्रति रोष है; कि वीआइपी (वेरी इंपोर्टेंट पर्सन) संस्कृति को इपीआइ (एवरी पर्सन इंपोर्टेंट) संस्कृति से बेदखल करना होगा। हर व्यक्ति का मूल्य और महत्त्व है। रेलवे मंत्रालय का ताजा आदेश प्रधानमंत्री के उस संदेश को ही आगे बढ़ाने की कोशिश है। जाहिर है, मकसद नेक है। लेकिन असल मुश्किल पेश आती है इसे लागू करने में। लोग अपने अनुभव से जानते हैं कि ऐसी भली-भली योजनाओं का क्या हश्र होता रहा है? हर मंत्रालय और विभाग में लिखा रहता है कि रिश्वत लेना और देना गैरकानूनी है, या कोई सरकारी या निजी व्यक्ति किसी के तबादले को लेकर बातचीत नहीं करेगा। लेकिन स्वयं मंत्रीगण इस पर कितना अमल करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।स्लीपर या एसी-थर्ड में रेलवे के कितने आला अफसर यात्रा करेंगे, कहना बड़ा कठिन है। वे यात्रा कर रहे हैं या नहीं, इसकी निगरानी कौन करेगा? जहां सौ-दो सौ रुपए लेकर टीटीइ बर्थ बेचते हों, वहां वे अपने अधिकारियों के लिए क्या-क्या व्यवस्था नहीं कर देंगे। इसलिए रेलवे के इन आदेशों को लेकर तभी कोई आश्वस्ति हो सकती है, जब इसे कार्यरूप में परिणत होते देखा जा सकेगा। वरना यह कोरे कागज की कहानी ही रहेगी। एक विसंगति यह भी देखी जा रही है कि वर्तमान सरकार का ज्यादातर कार्यकाल खत्म हो गया है, तब वीआइपी संस्कृति मिटाने की जरूरत महसूस हुई है! देर से उठाया गया यह कदम क्या टिकाऊ साबित होगा! 

Comments

Popular Posts