जीएसटी पर सरकार को नरम रुख अपनाना होगा


जीएसटी की 28 प्रतिशत की सबसे ऊंची दरों के दायरे में आने वाली 150 से 200 वस्तुओं पर रियायत की तैयारी कर रही है।

संपादकीय
यह अच्छीबात है कि सरकार जीएसटी की 28 प्रतिशत की सबसे ऊंची दरों के दायरे में आने वाली 150 से 200 वस्तुओं पर रियायत की तैयारी कर रही है। इसका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा। यह राजनीतिक बहस का विषय है कि इसे कदम वापसी माना जाए या दो कदम पीछे खींच कर एक कदम आगे बढ़ाने की तैयारी लेकिन, अर्थव्यवस्था की मौजूदा दशा और छोटे मझोले व्यापारियों की परेशानी को देखते हुए ऐसा करना जरूरी है। जिन वस्तुओं की दरें कम करने की तैयारी है उनकी संख्या उच्च श्रेणी में रखी जाने वाली वस्तुओं की आधी बैठती है। अगर ऐसा हुआ तो उच्च दरों की श्रेणी में सिर्फ वही वस्तुएं बचेंगी, जिन्हें विलासिता से संबंधित माना जाता है। हालांकि 10 नवंबर को गुवाहाटी में प्रस्तावित जीएसटी परिषद की बैठक के लिए कई सुझाव आए हैं। उनमें एक सुझाव आर्थिक से ज्यादा मनौवैज्ञानिक है। कुछ राज्यों के प्रतिनिधियों का कहना है कि किसी भी सामान पर जीएसटी का ब्योरा छापने की बजाय उसे एमआरपी में जोड़कर ही लिखा जाए और इससे लोगों के भड़कने की गुंजाइश कम रहेगी, क्योंकि उन्हें कर बढ़ने का अहसास नहीं होगा। लेकिन चार महीने पहले लागू किए गए जीएसटी से छोटे और मझोले व्यापारियों की कमर टूट गई है। उसके अलावा हर महीने रिटर्न दाखिल करने की बाध्यता ने भी व्यापारियों को सांसत में डाल दिया है। पिछले महीने सरकार ने डेढ़ करोड़ रुपए तक का व्यापार करने वालों को हर तिमाही पर रिटर्न दाखिल करने की छूट दी है और अब वैसी ही छूट पांच से दस करोड़ तक के व्यापारियों को देने की मांग उठ रही है। विलंब शुल्क को भी घटाकर 200 रुपए से 50 रुपए करने की चर्चा है। जीएसटी के बारे में यह कहने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए कि इससे पहले जिस तरह से नोटबंदी लागू की गई, उसने इसके अच्छे प्रभावों को मिटा दिया। नोटबंदी ने अनौपचारिक क्षेत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया और कई छोटे कारोबारियों ने अपना काम समेट लिया था और जीएसटी ने मझोले व्यापारियों को भी ध्वस्त कर दिया। व्यापारी जीएसटी और नोटबंदी के बीच झूल रहे हैं और इसीलिए डिजिटल भुगतान की बजाय नकद भुगतान पर जोर दे रहे हैं। इसमें राजनीतिक पक्षधरता को निकालकर भी देखा जाए तो डॉ. मनमोहन सिंह की यह बात सही लगती है कि जीएसटी सही विचार था लेकिन, गलत तरीके से लागू किया गया।

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